एकल माटी कुंजर चीटी ,भाजन है बहु नाना रे , असथावर जंगम कीट पतंगम ,घट घट रामु समाना रे।


Virendra Sharma shared a post.

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Shambhu Dayal Vajpayee
हैं। इसी लिए सुबह उठने के बाद धरती माता की वंदना कर पग रखने की परंपरा है।जो गुजरात में द्वारिकानाथ हैं वही दक्षिण भारत में श्रीवेंकटेश बालाजी महाराज हैं। दोनों चतुर्भज। बाला जी महाराज का नाम है त्रिपतिबाला जी । मूल संस्‍कृत शब्‍द त्रिपति का अपभ्रंश तिरुपति हो गया और लोग तिरुपति बालाजी कहने लगे।''
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'' काशी - अयोध्‍या की तरफ अभिवादन में राम -राम कहने की परंपरा है। दो बार ही बोलते हैं, एक या तीन बार नहीं। ऐसा क्‍यों ? इसके पीछे भावना है कि मुझ को जो दिखता है , मेरे सामने वाला , वह मेरा राम है और मेरे अंदर भी तेरा राम है। मैं राम जी के प्रकाश से जगत को देख पाता हूं। राम जी मुझे प्रकाश देते हैं। जो दीख पडता है वह राम है तथा जो देखता है , तत्‍व -दृष्टि से , वह भी राम जी का ही स्‍वरूप है। सब राम मय।''
डोंगरे जी महाराज की तत्‍वार्थ - रामायण में यह पढा। इससे लगता है कि भारतीय दर्शन की जडें ब्‍यावहारिक रूप से लोक जीवन में कितने गहरे तक अनुस्‍यूत हैं।


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Comments

Virendra Sharma सभै घट रामु बोले ,राम बोलै रामा बोलै ,

राम बिना को बोलै रे। 


(१ )

एकल माटी कुंजर चीटी ,भाजन है बहु नाना रे , 

असथावर जंगम कीट पतंगम ,घट घट रामु समाना रे। 

(२ )

एकलु चिंता राखु अनंता , अउर तजहु सब आसा रे ,

प्रणवै नामा भए निहकामा ,को ठाकुर को दासा रे। 

भाव -सार :बोलने वाला वह राम है जो सबके हृदय में रहता है ,मनुष्य क्या बोल सकता है अर्थात कुछ नहीं। न वह अपनी मर्जी से चुप रह सकता है और न बोल ही सकता है। चींटी से लेकर हाथी तक सभी एक ही तत्व की निर्मिति हैं। एक ही मिट्टी से उपजें हैं। जीवों की सभी प्रजातियां कीट पतंग सभी इसी माटी का खेला है। उस एक परमात्मा से ही आस रख उसी से लौ लगा बाकी सब माया का कुनबा है वहां से कुछ मिलना विलना नहीं हैं। गुरु नामदेव कहते हैं मैं इस जगत के प्रति उदासीन हो चुका हूँ आप्तकाम निष्काम हो चुका हूँ। मेरे लिए नौकर और स्वामी में कोई फर्क नहीं रह गया है। सब उसी का खेल है। 

(३ )
घट घट में हरजू बसे , संतन कही पुकार ,

कहु नानक रे भज मना भउ निधि उतरे पार। 

(४ )
फरीदा खालिक खलक में ,खलक बसे रब माहि ,

मंदा किसनु आखिये जब इस बिन कोई नाहि।
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Virendra Sharma घट घट में हरजू बसे , संतन कही पुकार ,

कहु नानक रे भज मना भउ निधि उतरे पार। 


(४ )
फरीदा खालिक खलक में ,खलक बसे रब माहि ,

मंदा किसनु आखिये जब इस बिन कोई नाहि। 

भावसार :नाम की महिमा का बखान किया गया है यहां ,हे जीव उसी नाम सिमरन से तेरा बड़ा पार होगा। यह सृष्टि और इसका सृजनहार दो नहीं हैं एक ही हैं ऐसे में किसे बुरा कहियेगा। सबमे वही तो है। वही एक राम जो सर्वव्यापी है।

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